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चीखता रहा अंतर्मन ,पर लबों की ख़ामोशी बहुत कुछ कह

 चीखता रहा अंतर्मन ,पर लबों की ख़ामोशी बहुत कुछ कह गई,
ख़ामोश सी नज़रें मेरी,ज़माने के सारे ज़ुल्म-ओ-सितम सह गई,

मेरे  मन  का  शोर  कोई  सुन  न पाया, होंठो की हँसी देखकर,
आँखों  ने   चुप्पी   तोड़ी    तो ,   ये   दुनिया  अवाक रह गई,

ख़ामोश   नजरों    का   दर्द   जहां   में ,  कौन  जान पाया है,
मीठी     सी     मुस्कान   भी   मेरी ,   हलाहल पीकर रह गई,

दिल   बहुत    दुखा    करता  है  , जमाने की दोगली बातों से,
मारे   शर्म   के    ख़ामोश रही आँखे ,चुपचाप देखती रह गई,

दिल  की   बातें  जब  आई  जुबाँ  तक , जहां भर में बातें हुईं,
जो  बोझ  था  दिल पर उतर गया, पर थोड़ी बेक़रारी रह गई ।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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