दोहा :- अन्न गिरे भू भाग पर , नहीं उठाते लोग । और चरण रज माथ पे , करते हैं उपयोग ।। जीवन दाता पर सभी , प्रवचन देते लोग । आये कोई सामने , करने भी सहयोग ।। मातु-पिता सेवा नही , खुद पे है अभिमान । आकर देखो नाथ अब , कलयुग का इंसान ।। आज कहीं दिखता नही , रिश्तों में सत्कार । और खडे इंसान है , भोले के दरबार ।। छोड़ो माया मोह को, थे जिनके यह बोल । कभी आप भी देखिये , धन से उनको तोल ।। बीस साल की नौकरी , में सिकुडी है खाल । एक समय रोटी मिले , अब ऐसा है हाल ।। दाल मिले सब्जी नही , ऐसे थे हालात । आप बताते हो हमें , अच्छे रख जज्बात ।। जीवन के इस खेल में, निर्धन पिश्ता सत्य । दौलत वाले ले मजा , कर उसपे अब अत्य ।। बाबाओं की बात पर , करो यकीं मत आज । पढ़े लिखे हो आज तुम , करो धर्म के काज ।। भूत प्रेत ये कुछ नहीं, सब है कर्म विधान । जिसके जैसे कर्म है , देते फल भगवान ।। इधर-उधर मत देख तू , राह नही आसान । राह बताये जो सरल , वो ही है शैतान ।। सास ससुर सम्मान दो , मातु-पिता अब जान । यह ही देती मातु है , बेटी को वरदान ।। मातु-पिता ने जब किया , तेरा कन्यादान । उस दिन के ही बाद से , तुम वहाँ मेहमान ।। जिसे हृदय से चाहना , अब तक का था काम । वही छोड़ मुझको यहाँ , करता है आराम ।। पहले तो सबला बनी , इस जग की हर नार । जब पाया कुछ भी नहीं , तो अब करे विचार ।। पहले पति के प्रेम की , तनिक नही परवाह । ढ़लती उम्र दिखला रही , पति से प्रेम अथाह ।। पाकर झूठे प्रेम को, किया बहुत अभिमान । अब आया वह सामने , लिए रूप शैतान ।। झूठे जग के लोग है , करना मत विश्वास । पाते अक्सर घात है , जो करते हैं आस ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- अन्न गिरे भू भाग पर , नहीं उठाते लोग । और चरण रज माथ पे , करते हैं उपयोग ।। जीवन दाता पर सभी , प्रवचन देते लोग । आये कोई सामने , करने भी सहयोग ।। मातु-पिता सेवा नही , खुद पे है अभिमान । आकर देखो नाथ अब , कलयुग का इंसान ।। आज कहीं दिखता नही , रिश्तों में सत्कार ।