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नज़रों से जो देखो मेरे एक बार तो बढ़ जाता है







नज़रों से जो देखो मेरे एक बार तो बढ़ जाता है इन तस्वीरों की भी एहमियत,
फिर जब देखोगे दोबारा इन्हें तो मिलेगी तुम्हारे कलेजे को भी राहत।
तस्वीर जो दिखता बस एक चित्र समान हैं,
पर छुपी होती उसमें यादों का एक बड़ा सा पिटारा हैं।
यादें जो कहती बीते दिनों की हजारों कहानियां हैं।।
तस्वीरें जिसमें माँ और बाबा अभी भी जवान हैं,
तस्वीरें जिसमें तुम्हारा बचपन आज भी बरकरार हैं,
तस्वीरें जिसमें कैद हैं आज भी तुम्हारा स्कूल का वो पहला दिन।








 तस्वीर, जिसे हम चित्र, छवि, फोटो इत्यादि नामों से भी जानते हैं,
क्या वो छवि बस एक चित्र हैं?
तुम्हे जिसमें बस चेहरे दिखते हैं, या दिखता हैं हसीन सा कोई नज़ारा,
या फिर अम्मा के द्वारा पकाए स्वादिष्ट पकवान को आने वाले दिनों में भी उपभोग करने का तुम्हारा ज़रिआ।
पर क्या उस तस्वीर का अस्तित्व बस इतने तक ही सीमित हैं?
तुम्हारा यूं हर नए छवि के खिचे जाने पर उसे हर सोशियल मीडिया हैंडल पर अपलोड करना,
और मोबाइल के मेमोरी फूल हो जाने पर "पुरानी फोटो हैं" बोलकर उसे डिलीट करना,
क्या तुम्हारा और इन तस्वीरों का बस उसके dp बनने तक का हैं?






नज़रों से जो देखो मेरे एक बार तो बढ़ जाता है इन तस्वीरों की भी एहमियत,
फिर जब देखोगे दोबारा इन्हें तो मिलेगी तुम्हारे कलेजे को भी राहत।
तस्वीर जो दिखता बस एक चित्र समान हैं,
पर छुपी होती उसमें यादों का एक बड़ा सा पिटारा हैं।
यादें जो कहती बीते दिनों की हजारों कहानियां हैं।।
तस्वीरें जिसमें माँ और बाबा अभी भी जवान हैं,
तस्वीरें जिसमें तुम्हारा बचपन आज भी बरकरार हैं,
तस्वीरें जिसमें कैद हैं आज भी तुम्हारा स्कूल का वो पहला दिन।








 तस्वीर, जिसे हम चित्र, छवि, फोटो इत्यादि नामों से भी जानते हैं,
क्या वो छवि बस एक चित्र हैं?
तुम्हे जिसमें बस चेहरे दिखते हैं, या दिखता हैं हसीन सा कोई नज़ारा,
या फिर अम्मा के द्वारा पकाए स्वादिष्ट पकवान को आने वाले दिनों में भी उपभोग करने का तुम्हारा ज़रिआ।
पर क्या उस तस्वीर का अस्तित्व बस इतने तक ही सीमित हैं?
तुम्हारा यूं हर नए छवि के खिचे जाने पर उसे हर सोशियल मीडिया हैंडल पर अपलोड करना,
और मोबाइल के मेमोरी फूल हो जाने पर "पुरानी फोटो हैं" बोलकर उसे डिलीट करना,
क्या तुम्हारा और इन तस्वीरों का बस उसके dp बनने तक का हैं?