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कभी-कभी तुझे सोचने की हद तक सोचता हूं कभी-कभी तो

कभी-कभी तुझे सोचने की हद तक सोचता हूं 
कभी-कभी तो सोचने का आलम ये तक हो जाता है
सुबह से शाम शाम से रात और
 फिर रात को एक वक्त ऐसा आता है 
जब तुझे सोचते-सोचते तकिया तक गीला हो जाता है...
धीरज सैनी धीर ...

©  Direct dil se तुझे सोचने की हद@....

#Shades
कभी-कभी तुझे सोचने की हद तक सोचता हूं 
कभी-कभी तो सोचने का आलम ये तक हो जाता है
सुबह से शाम शाम से रात और
 फिर रात को एक वक्त ऐसा आता है 
जब तुझे सोचते-सोचते तकिया तक गीला हो जाता है...
धीरज सैनी धीर ...

©  Direct dil se तुझे सोचने की हद@....

#Shades

तुझे सोचने की हद@.... #Shades #शायरी