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कविता-लेखन बहुत कठिन है दम लगता है बाबू जी उसकी उ

कविता-लेखन बहुत कठिन है दम लगता है बाबू जी 
उसकी उपमा में ग्रन्थ लिखो पर कम लगता है बाबू जी

ख़ुद पवन-वेग उल्टा हो जाए बाल जो पीछे फेंके है 
जब झटक के गर्दन ज़ुल्फ़ सँवारे वक़्त ठहर कर देखे है
 हर शाम रसोई में थक हमको इत्मीनान से सोचे वो
 फिर कमर में साड़ी खोंस के उल्टे हाथ से माथा पोछे वो
 उसके छूने से ज़ख्मों पर मरहम लगता है बाबू जी
 उसकी उपमा में ग्रन्थ लिखो पर कम लगता है बाबू जी

जाने क्यूँ उसके इर्द-गिर्द हर दौर शराबी लगता है 
उसकी आँखों में घुलकर काजल और गुलाबी लगता है
 हर शाम तमन्ना रहती है फिर नैन निहारें उसके हम 
आग़ोश में उसकी सर रख दें और केश सँवारे उसके हम 
उन होठों पर ठहरा क़तरा शबनम लगता है बाबू जी
 उसकी उपमा में ग्रन्थ लिखो पर कम लगता है बाबू जी

बारिश में बाल झटक दोहरी बरसात करे तो जन्नत है
 फिर ज़ुल्फ़ को कान के पीछे लाकर बात करे तो जन्नत है
 वो शर्म को ओढ़े हमको अपने पास बिठाले जन्नत है
 फिर नज़र मिलाए नज़र मिलाकर नज़र झुकाले जन्नत है 
जब साथ चले तो स्याह सफ़र पूनम लगता है बाबू जी 
उसकी उपमा में ग्रन्थ लिखो पर कम लगता है बाबू जी

©Liberal Confinement #liberal_condinement #parrizzad #ansh 

#leaf
कविता-लेखन बहुत कठिन है दम लगता है बाबू जी 
उसकी उपमा में ग्रन्थ लिखो पर कम लगता है बाबू जी

ख़ुद पवन-वेग उल्टा हो जाए बाल जो पीछे फेंके है 
जब झटक के गर्दन ज़ुल्फ़ सँवारे वक़्त ठहर कर देखे है
 हर शाम रसोई में थक हमको इत्मीनान से सोचे वो
 फिर कमर में साड़ी खोंस के उल्टे हाथ से माथा पोछे वो
 उसके छूने से ज़ख्मों पर मरहम लगता है बाबू जी
 उसकी उपमा में ग्रन्थ लिखो पर कम लगता है बाबू जी

जाने क्यूँ उसके इर्द-गिर्द हर दौर शराबी लगता है 
उसकी आँखों में घुलकर काजल और गुलाबी लगता है
 हर शाम तमन्ना रहती है फिर नैन निहारें उसके हम 
आग़ोश में उसकी सर रख दें और केश सँवारे उसके हम 
उन होठों पर ठहरा क़तरा शबनम लगता है बाबू जी
 उसकी उपमा में ग्रन्थ लिखो पर कम लगता है बाबू जी

बारिश में बाल झटक दोहरी बरसात करे तो जन्नत है
 फिर ज़ुल्फ़ को कान के पीछे लाकर बात करे तो जन्नत है
 वो शर्म को ओढ़े हमको अपने पास बिठाले जन्नत है
 फिर नज़र मिलाए नज़र मिलाकर नज़र झुकाले जन्नत है 
जब साथ चले तो स्याह सफ़र पूनम लगता है बाबू जी 
उसकी उपमा में ग्रन्थ लिखो पर कम लगता है बाबू जी

©Liberal Confinement #liberal_condinement #parrizzad #ansh 

#leaf