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बंजर पडीं भूमि मे... कहाँ सृजन हो पाता है, माटी अप

बंजर पडीं भूमि मे...
कहाँ सृजन हो पाता है,
माटी अपनी उर्वरता खो दे....
तो उस भूमि का क्या मोल रह जाता है,

सूख जाए जो दरख्त तो... 
शाख भी कहाँ साथ रह पाती है,
हवा के एक झोंके से.... 
वो भी टूट बिखर जाती है,

अमृत की धारा बन....
जल जीवों को आश्रय देता,
सूख जाए जब धार वही तो....
जीव भी निर्जीव हो जाता है,

मानव जीवन की भी राह यही..... 
सुख, सम्पत्ति, धन , वैभव से परिपूर्ण.... 
तो जग भी साथ हो जाता है
निकट अंत हो तो..... 
सब एक एक कर छूट जाता है।
                     ✍🏼deepti😊 #jeewan#ashay Roshani Thakur Raj Choudhary ..SShikha.. Sandeep rohilla ~anshul gupta✍️
बंजर पडीं भूमि मे...
कहाँ सृजन हो पाता है,
माटी अपनी उर्वरता खो दे....
तो उस भूमि का क्या मोल रह जाता है,

सूख जाए जो दरख्त तो... 
शाख भी कहाँ साथ रह पाती है,
हवा के एक झोंके से.... 
वो भी टूट बिखर जाती है,

अमृत की धारा बन....
जल जीवों को आश्रय देता,
सूख जाए जब धार वही तो....
जीव भी निर्जीव हो जाता है,

मानव जीवन की भी राह यही..... 
सुख, सम्पत्ति, धन , वैभव से परिपूर्ण.... 
तो जग भी साथ हो जाता है
निकट अंत हो तो..... 
सब एक एक कर छूट जाता है।
                     ✍🏼deepti😊 #jeewan#ashay Roshani Thakur Raj Choudhary ..SShikha.. Sandeep rohilla ~anshul gupta✍️
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