ये किसी शाहजहां की मुमताज नही कविता किसी कलम की मोहताज नही दुल्हन के सजने में गीतों के बजने में विरहा की रातों में वृक्षों के पातों में तन्हा यूं रहने में झरनों के बहने में पवनो के चलने में सांझों के ढलने में फूलों के महकने में कोयल के चहकने में शिशुओं के क्रंदन में ईश्वर के वंदन में सब कविताएं हैं बुंदेला कोई आवाज नहीं कविता किसी कलम की मोहताज नही। #बुंदेला