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लिखते मुझे जो तुम कभी अपनी ग़ज़ल में दर्द सा करते म

लिखते मुझे जो तुम कभी अपनी ग़ज़ल में दर्द सा
करते  मुझे  शामिल  कभी  हर  दर्द में  हमदर्द सा
ठंडी  पड़ी   है   प्यार  की   सारी  यहाँ  चिंगारियाँ
हर मोड़ पर दिखता यहाँ हर आदमी क्यों सर्द सा
जब  औरतों की  आबरू  होती रही  छलनी  यहाँ
ख़ामोश क्यों रहता वही, दिखता यहाँ जो मर्द सा.

©malay_28
  #मर्द सा
malay285956

malay_28

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