जो भी ढूंढोगे ,सब मिलेगा बाजार है ये साहब ,यहाँ सब बिकेगा क्यों उम्मीद लगा के बैठे हो किसी और से हकीकत है ये साहब,यहाँ हर ख्वाब टूटेगा जितना दबाना है ,दबा लीजिये याद रखिये साहब,सच परत-दर परत निकल कर रहेगा हम चुप है ,तो मुर्दा समझ बैठे है आप सही वक्त आने पर साहब, हर एक जुबान खुलेगा गगनचुम्बी इमारतों का दम्भ भरने वालों सुन लो साहब! ,यहाँ हर किसी का नींव हिलेगा तुम लगा कर ताला, सोचते हो कि सब बंद हो गया बिठा लो गांठ साहब ,हर एक राज चाभी से खुलेगा @bhishek rajhans ©Abhishek Rajhans मेरे अल्फाज़ 011 #Lights