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क्या बेटी होना सौभाग्य है या दुर्भाग्य...........?

क्या बेटी होना सौभाग्य है या दुर्भाग्य...........?

अक्सर सुना करते थे कि पहले के लोग बेटियां को कोख में ही मार देते थे, उनके जन्म पर मिठाई नहीं अफसोस बांटा जाता था, उन्हें सिर का ताज नहीं, सिर पर मढ़ दिया जाने वाला बोझ समझा जाता था जिसे माँ-बाप को जीवन भर उठाना पड़ता था।
क्या वाकई जमाना बदल गया है या कुदरत के इस फैसले को सब मानने पर विवश हो कर, जी रहे है?
हां, क्योंकि बेटियों के जीवन में ज्यादा बदलाव तो नहीं लग रहा, बस अंतर इतना ही है कि पहले उन्हें अशिक्षित रखकर, उनकी ख्वाहिशों को दबाकर, बेबुनियादी परंपराओं की बेड़ियों और समाज की घटिया सोच के दवाब के कारण घर तक ही सीमित रखा जाता था।
किन्तु आज बेटियों को पंख दिए गए है, ऊंची उड़ान भरने के लिए। शिक्षित करा जाता है, उनकी ख्वाहिशों को भी पूरा किया जाता है, हर बंधन, हर बेड़ियों से आजाद रखकर, अपने तरीके से जीने और फैसले लेने के काबिल भी बनाया जाता है।
फिर कमी आखिर कहां रह गई? पहले सिर्फ लोग ही बेटियों को बोझ समझते थे, पर आज की तारीख में एक बेटी जब पढ़-लिखकर, डिग्री हासिल कर, ठीक-ठाक कमा कर माँ-बाप की थोड़ी बहुत मदद कर, अपने पैरों पर खड़ी है। इतने अहम बदलावों के बाद आज जब बेटी खुद को बेटी होने पर अफसोस करती है न...तो कमी तो रह गई है।
पता जब एक बेटी सक्षम होकर भी, अपने माता-पिता को उसकी शादी के लिए दहेज के पैसे जुटाने में चिंतित और दुःखी देखती है न तो, क्या वो डिग्रियां, क्या वो काबिलीयत, खुद को ही बेटी होने पर अपने माता-पिता के जीवन का बोझ समझने लगती है।।
और वजह सिर्फ एक
दहेज, दहेज, दहेज................................. आखिर क्यों?

©Deepanjali Patel (DAMS)
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