तम्मनाओं के घेरो ने क्या खूब है घेरा अब तो इश्क में तेरे नही दिखता मुझें ये सांझ और सवेरा हम दूर है या पास , इसकी समझ कहाँ तक है रात टिमटिमाते हो मुझें बनके चांद और ख्वाब यूंही कहाँ मोहब्ब्त लिखती है हर रोज थोड़ा थोड़ा लिए वही फेरा तम्मनाओं के घेरो ने क्या खूब है मुझें घेरा #neerajwrites तम्मनाओं के घेरे