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जी लें कुछ दिन और हम , तुम जो दे दो साथ । राह भटक

जी लें कुछ दिन और हम , तुम जो दे दो साथ ।
राह भटक जाए  नहीं , चलो  पकड़  लो हाथ ।।

मरने  का  अब  गम  नहीं , जीने  की  है  चाह ।
थामों   मेरी    बाह   तुम ,   नई-नई   है   राह ।।

मन  चाहे  साथी  मिले , मन की  कह दी बात ।
जब  चाहें  आयें  चले ,  सुनो   लेकर   बरात ।।

बड़े-बुढो  का  आज  तुम , आकर लो आशीष ।
बीत  न  जाए  शुभ-घड़ी , रूठ  न  जाएं  ईश ।।

जो कहना  था  कह  दिया , आगे  जानो  आप ।
मन से  मन  की  बात थी , फिर क्या पश्चाताप ।।

                   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जी लें कुछ दिन और हम , तुम जो दे दो साथ ।
राह भटक जाए  नहीं , चलो  पकड़  लो हाथ ।।

मरने  का  अब  गम  नहीं , जीने  की  है  चाह ।
थामों   मेरी    बाह   तुम ,   नई-नई   है   राह ।।

मन  चाहे  साथी  मिले , मन की  कह दी बात ।
जब  चाहें  आयें  चले ,  सुनो   लेकर   बरात ।।
जी लें कुछ दिन और हम , तुम जो दे दो साथ ।
राह भटक जाए  नहीं , चलो  पकड़  लो हाथ ।।

मरने  का  अब  गम  नहीं , जीने  की  है  चाह ।
थामों   मेरी    बाह   तुम ,   नई-नई   है   राह ।।

मन  चाहे  साथी  मिले , मन की  कह दी बात ।
जब  चाहें  आयें  चले ,  सुनो   लेकर   बरात ।।

बड़े-बुढो  का  आज  तुम , आकर लो आशीष ।
बीत  न  जाए  शुभ-घड़ी , रूठ  न  जाएं  ईश ।।

जो कहना  था  कह  दिया , आगे  जानो  आप ।
मन से  मन  की  बात थी , फिर क्या पश्चाताप ।।

                   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जी लें कुछ दिन और हम , तुम जो दे दो साथ ।
राह भटक जाए  नहीं , चलो  पकड़  लो हाथ ।।

मरने  का  अब  गम  नहीं , जीने  की  है  चाह ।
थामों   मेरी    बाह   तुम ,   नई-नई   है   राह ।।

मन  चाहे  साथी  मिले , मन की  कह दी बात ।
जब  चाहें  आयें  चले ,  सुनो   लेकर   बरात ।।

जी लें कुछ दिन और हम , तुम जो दे दो साथ । राह भटक जाए नहीं , चलो पकड़ लो हाथ ।। मरने का अब गम नहीं , जीने की है चाह । थामों मेरी बाह तुम , नई-नई है राह ।। मन चाहे साथी मिले , मन की कह दी बात । जब चाहें आयें चले , सुनो लेकर बरात ।। #ishq #कविता