जी लें कुछ दिन और हम , तुम जो दे दो साथ । राह भटक जाए नहीं , चलो पकड़ लो हाथ ।। मरने का अब गम नहीं , जीने की है चाह । थामों मेरी बाह तुम , नई-नई है राह ।। मन चाहे साथी मिले , मन की कह दी बात । जब चाहें आयें चले , सुनो लेकर बरात ।। बड़े-बुढो का आज तुम , आकर लो आशीष । बीत न जाए शुभ-घड़ी , रूठ न जाएं ईश ।। जो कहना था कह दिया , आगे जानो आप । मन से मन की बात थी , फिर क्या पश्चाताप ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जी लें कुछ दिन और हम , तुम जो दे दो साथ । राह भटक जाए नहीं , चलो पकड़ लो हाथ ।। मरने का अब गम नहीं , जीने की है चाह । थामों मेरी बाह तुम , नई-नई है राह ।। मन चाहे साथी मिले , मन की कह दी बात । जब चाहें आयें चले , सुनो लेकर बरात ।।