सच्चाई में रहना सदा बेहतर होता है
चार दिन ही झूठ का सफ़र होता है
तीरगी की है आख़िर उम्र ही कितनी
इक लौ से अँधेरा दर-ब-दर होता है
इस दौर के इँसा का तो कहना क्या
मुँह में ख़ुदा बग़ल में ख़ंजर होता है
सब कुछ होकर तो नसीब को न कोसो
पास सभी के न रोटी औ' घर होता है
साया अपना ही अँधेरे में साथ नहीं देता
कौन किसी का ताउम्र हमसफ़र होता है
हर मुसीबत से 'शाद' ये बचा लेती हैं
माँ की दुआओं में इतना असर होता है
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