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याद करते हैं चलो वो पुरानी मुलाक़ातें, कुछ खट्ठी क

 याद करते हैं चलो वो पुरानी मुलाक़ातें,
कुछ खट्ठी कुछ मीठी बातें..!

सूखे मन की बेचैनी को,
भिगाती रिमझिम सी बरसातें..!

कन्धे पे रख कर हाथ यूँ ही,
भरोसे की पहचान कराते..!

उड़ चलें बादलों के ऊपर हम,
ख़्वाहिशों के पँख फ़ैलाते..!

मुक़द्दर को लिखते अपने ख़ुद ही,
सिकन्दर दुनिया में कहलाते..!

सुख की नगरी हो छलकत गगरी सी,
लिखे सभी खतों को मन सा सहलाते..!

टिक न सके झूठ का ज़ालिम सम्मुख,
हौंसलों से अपने दुश्मनों को हराते..!

©SHIVA KANT
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