संक्रांति : क़िस्सा-ए-दिन आज में आप सबकों दो पात्रों से मिलवाता हु जिसमे एक तरफ़ बूढ़ा ग़रीब है औऱ दूसरी तरफ़ तीन दुकानदार, औऱ इन दोंनो क़िस्सों में मेरा हिस्सेदारी सिर्फ़ दर्शक का है। पहला क़िस्सा - दिनाँक 13 बुधवार यानी कल का समय, सूरज आसमा की ऊंचाइयों को छू रहा था तभी मैंने एक बूढ़े व्यक्ति को अपने सर् पर बोरी लादे गल्ले की दुकान की तरफ़ धीरे-धीरे बढ़ते हुए देखा, चेहरे पर झुर्रियां, चमड़ी का अधिकांश हिस्सा हड्डियों के साथ जुड़ चुका था, जिसके धोती का थोड़ा हिस्सा मैला औऱ फटा हुआ था अपने साथ बोरी में चावल बेचने के इरादे से उनका आना हुआ था चावल तोला गया जिसका बजन 17 kg के आसपास हुआ, दुकानदार ने जो दाम उनके सामने रखा उसे सुनकर उनके पेशानी औऱ चेहरे में सिकन, परेशानी, जिम्मेदारी, चिंता, साफ़ देखा जा सकता था उन्होंने धीरे स्वर में कहा थोड़ा उचित दाम लगा दो सेठ, कल संक्रांति है मेरे पोते ने लड्डू खाने की इक्षा ज़ाहिर की है पर दुकानदार अपने बातों पर अड़िग रहा, मज़बूरी से बंधा बूढा व्यक्ति कम पैसे लिए ही वहाँ से चला गया। दूसरा क़िस्सा- अँधियारे ने आसमा में घेरा डाल रखा था, चिड़ियाँ भी अपने घोंसलों की तरफ़ बढ़ चुके थे रौशनी से बाज़ार का रंग चढ़ा हुआ था में एक किराने की दुकान में सामग्री लेने गया, वहाँ तीन व्यक्ति आपस मे कल संक्रांति की योजना बना रहे थे जिसमें से एक ने कहा हमारे पंडित जी ने कहा है कल सुबह 8:30 बजे का समय नर्मदा जी मे नहाने का सबसे उचित समय है जिसमें से दूसरा व्यक्ति कहता है हमने इतने भी पाप नहीं किये है जो सुबह-सुबह ठंड में जाकर नहाएं, अब सभी हँसी के हिस्सेदार बन चुके थे। ©Akhilesh Dhurve #sankranti #nojotoapp #quoteoftheday #Jimmedari #Tranding #follow #nojotonews #nojotowriters #dukan #Sunrise