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ब्रह्मचारिणी शब्द दो पदों से मिलके बना है ।ब्रह्म=

ब्रह्मचारिणी शब्द दो पदों से मिलके बना है ।ब्रह्म= बड़े लक्ष्य में ।चारिणी = तन्मय ।ऐसे ही एकाग्रता का भी यही अर्थ होता है जैसे एक= अर्थात एक अपने लक्ष्य ही को, अग्रता=माने अधिक अर्थात समस्त ब्रह्मांड से भी अधिक मूल्यवान फील करना।अर्थात  माँता अपने (एक)परम लक्ष्य भगवान शिव में इतनी (अग्र)तन्मय हो गई की शरीर की आवश्यक चीजों जैसे भोजन फल पानी पत्ते हवा आदि ग्रहण के लिए भी शरीर को प्रेरित करने का ख्याल नही आया परंतु लगभग सभी साइट्स पर  लिखा है की ब्रह्म=तप के आचरण के कारण ब्रह्मचारिणी नाम हुआ  पर  महाभारत में कहा है कि मन एवं इंद्रियों की एकाग्रता ही श्रेष्ठ तप है।"मनसश्चेंद्रियाणां ह्यैकाग्रयं परमं तपः" एक= अर्थात एक अपना लक्ष्य ही को, अग्रता=माने अधिक अर्थात समस्त ब्रह्मांड से भी अधिक मूल्यवान (अपना लक्ष्य )फील करना ही परं (श्रेष्ठ)तप है। माँ ब्रह्मचारिणी के नाम का रहस्य
ब्रह्मचारिणी शब्द दो पदों से मिलके बना है ।ब्रह्म= बड़े लक्ष्य में ।चारिणी = तन्मय ।ऐसे ही एकाग्रता का भी यही अर्थ होता है जैसे एक= अर्थात एक अपने लक्ष्य ही को, अग्रता=माने अधिक अर्थात समस्त ब्रह्मांड से भी अधिक मूल्यवान फील करना।अर्थात  माँता अपने (एक)परम लक्ष्य भगवान शिव में इतनी (अग्र)तन्मय हो गई की शरीर की आवश्यक चीजों जैसे भोजन फल पानी पत्ते हवा आदि ग्रहण के लिए भी शरीर को प्रेरित करने का ख्याल नही आया परंतु लगभग सभी साइट्स पर  लिखा है की ब्रह्म=तप के आचरण के कारण ब्रह्मचारिणी नाम हुआ  पर  महाभारत में कहा है कि मन एवं इंद्रियों की एकाग्रता ही श्रेष्ठ तप है।"मनसश्चेंद्रियाणां ह्यैकाग्रयं परमं तपः" एक= अर्थात एक अपना लक्ष्य ही को, अग्रता=माने अधिक अर्थात समस्त ब्रह्मांड से भी अधिक मूल्यवान (अपना लक्ष्य )फील करना ही परं (श्रेष्ठ)तप है। माँ ब्रह्मचारिणी के नाम का रहस्य