जाने की चाहत तो किसी को न थी अपनाने का हक भी किसी को न था छोड़ने की कसक तो थी पर उलझनों का बोझ ज्यादा था अपना सा हो गया था सब कुछ पर अपना कहने वाला कोई न था एहसास तो हर चीज़ का था पर मुक्कमल हो ये जरूरी भी न था राहे सभी की अलग थी और साथ भी रहना था कभी अल्फ़ाजो कि लड़ी लगी थी आज एक शब्द भी छोटा था पहले हलचलें भूचाल ला देती थी और आज किसी को ख़बर ना थी बड़े खुश हुए थे ये सोचकर,की सुकून मिलेगा पर अगले ही पल का भरोसा किसी को न था ©अर्पिता #बिछड़न