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उड़ना चाहती थी आजाद खुले गगन में परिंदों जैसी मैं

उड़ना चाहती थी आजाद खुले गगन में परिंदों जैसी मैं भी,
छूना चाहती थी आसमान की बुलंदियों को हुनर से मैं भी।
पर समाज की खींची लक्ष्मण रेखा मैं कभी पार न कर पाई।
देहरी के उस पार की जिंदगी जी कर देखना चाहती थी मैं भी।

 🌝प्रतियोगिता-107🌝
 
✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️

🌹"देहरी के उस पार"🌹

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
उड़ना चाहती थी आजाद खुले गगन में परिंदों जैसी मैं भी,
छूना चाहती थी आसमान की बुलंदियों को हुनर से मैं भी।
पर समाज की खींची लक्ष्मण रेखा मैं कभी पार न कर पाई।
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