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Insprational Qoute
देहरी के उस पार,मंजिल को है मेरा इंतजार, मुझमें है ख़ूबी कर जाऊँगी,हुन्नर है बेशुमार, न रोकना न टोकना, न काटना मेरे पंखों को, नही तो बना बनाया उजड़ जाएगा मेरा संसार, रह अपनी मर्यादा में,तेरा मान भी मैं बढ़ाऊंगी, बस बनाये रख आशीष, विनती है ये बारम्बार। 🌝प्रतियोगिता-107🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"देहरी के उस पार"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
Sunil itawadiya
त्याग और परीक्षा केवल स्त्री के हिस्से में ही आती है, पुरुष तो जैसे जन्मजात मर्यादा पुरुषोत्तम होते हैं,, 🌝प्रतियोगिता-107🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"देहरी के उस पार"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
Asha Giri
देहरी के उस पार आजादी है, न कोई रोक-टोक है और न ही कोई पाबंदी है। मनमर्जियों की जिंदगी है,पर जीवन की बर्बादी है। थोडी़ सी बंदिशें अच्छी है जीवन में इसी में पुरखों की रजा़मंदी है।। 🌝प्रतियोगिता-107🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"देहरी के उस पार"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
Prerit Modi सफ़र
देहरी के उस पार ख़्वाहिशें आज़ाद हैं खुला आसमान है बंद हूँ कफ़स में मुद्दत्तों से उस पार रूह मेरी परवाज़ है ज़ालिम दुनिया ने की है संगदिली मुझ से 'सफ़र' आज उड़ जाने दे मुझे, उस पार ज़िन्दगी गुलज़ार है 🌝प्रतियोगिता-107🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"देहरी के उस पार"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
DR. SANJU TRIPATHI
उड़ना चाहती थी आजाद खुले गगन में परिंदों जैसी मैं भी, छूना चाहती थी आसमान की बुलंदियों को हुनर से मैं भी। पर समाज की खींची लक्ष्मण रेखा मैं कभी पार न कर पाई। देहरी के उस पार की जिंदगी जी कर देखना चाहती थी मैं भी। 🌝प्रतियोगिता-107🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"देहरी के उस पार"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
तू एक मासूम ही सही, पर तू मोतियों की एक लड़ी है, तू नारी ही सही, पर तू नारायणी बन के संग खड़ी है। तुझे कोई भी कुचल देता, जब तक तू एक अबला है, कुछ भी नहीं है मुश्किल, जग में तेरी शख्सियत बड़ी है। क्यों बांधकर जंजीरों को पैरों में, चहर दिवारी में पड़ी है, देहरी के उस पार तो निकल, दुनिया स्वागत में खड़ी है। 🌝प्रतियोगिता-107🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"देहरी के उस पार"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
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