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कभी बादल ने प्यास लगाई थी अबकी बादल ने प्यास बुझाई

कभी बादल ने प्यास लगाई थी
अबकी बादल ने प्यास बुझाई है
जबसे कबसे सूखे थे बादल
कि सावन में भी थी अगन
यूँ झूम-झूम कर बरसे मेघ, 
कि सिहर....
शीत को चढ आई है । 

कभी बादल ने प्यास लगाई थी
अबकी बादल ने प्यास बुझाई है
गुथे जो गुच्छे थे मेघों के
उड़ते-फिरते थे हलकी हवाओं से
सब गाद-गंदल बनकर बह गये, 
जिसमें रेत होती 
उर्वर मिट्टी हरसाई है । 

कभी बादल ने प्यास लगाई थी
अबकी बादल ने प्यास बुझाई है
चारों ओर बहाव और अवरोध
कि बदन हड्डी रूह तक 
जैसे नहाई है, 
शेष पीछे धुंधली होती
यादों की परछाई है । 

कभी बादल ने प्यास लगाई थी
अबकी बादल ने प्यास बुझाई है ।
कभी बादल ने प्यास लगाई थी
अबकी बादल ने प्यास बुझाई है
जबसे कबसे सूखे थे बादल
कि सावन में भी थी अगन
यूँ झूम-झूम कर बरसे मेघ, 
कि सिहर....
शीत को चढ आई है । 

कभी बादल ने प्यास लगाई थी
अबकी बादल ने प्यास बुझाई है
गुथे जो गुच्छे थे मेघों के
उड़ते-फिरते थे हलकी हवाओं से
सब गाद-गंदल बनकर बह गये, 
जिसमें रेत होती 
उर्वर मिट्टी हरसाई है । 

कभी बादल ने प्यास लगाई थी
अबकी बादल ने प्यास बुझाई है
चारों ओर बहाव और अवरोध
कि बदन हड्डी रूह तक 
जैसे नहाई है, 
शेष पीछे धुंधली होती
यादों की परछाई है । 

कभी बादल ने प्यास लगाई थी
अबकी बादल ने प्यास बुझाई है ।