न जलाना मुझे और नाही दफ़न होने देना मेरी मिट्टी में अभी और भी जाँ बाकी है मै हिन्दू या मुसलमां ये दो अल्फ़ाज़ नही मेरी आंखों में क़लीशा के निशां बाकी है लगे न दाग़ मेरी पाक पैराहन पे कही तुम्हारे नाखून में लहू के निशां बाकी है किया था खत्म जहाँ तुम ने मेरी यादों को उसी मिट्टी पे मेरे पैरों के निशां बाकी है दिखे न मुझमे तुम तो आज क्यू घबरा से गये मेरे जैसे अभी जहाँ में बहोत बाकी है मिटा दो आज भले मुझको अपनी बातों से तुम्हारे आईने में अक्स मेरे बाकी है --- गौतम ©Gautam Prajapati Hindu Muslim