सहर से पहले ही डरने लगा हूं खुद को अंधेरों से भरने लगा हूं कुछ तो है गहरा ज़ख्म मेरा भी खुद से ही अब ये कहने लगा हूं बैर नहीं कोई ...मेरा रहा है फिर भी क्यूं बैरी लगने लगा हूं लम्हों में जिसके रहता था ज़िंदा उसी के ख्यालों में मरने लगा हूं अब तो नहीं कोई शाम सुहानी सायों का मंज़र मैं बनने लगा हूं #ज़िंदगी#फ़लसफ़ा