मैं अवाक हूँ देख क़र तुम्हारे इंद्रधनुषी झूलों को तुम्हारे ही क्षितिजों पर झूलते हुए. तेरी नदिया अवाहन कर रही और मुझे तैरने क़े लिए उकसा भी रही है ताकि मैं तैर क़र त्तेरे उदगम तक पहुंच सकू तेरा रहस्य जानने की लिए तेरे ये जंगली कबूतर भी मुझे बेहद प्रिय हैँ मुझे. जो सांस ले रहे गीत गा रहे मेरे ही साथ मेरे ही निस्तब्ध खानाबदोष आँगन मे मेरे ऐकाकीपन क़े समापन क़े लिए ©Parasram Arora मैं अवाक हूँ.......