बेजान परों से उड़ने को कोशिश में हर बार गिरना और फिर मौन से शब्दों में ये कह देना कि शायद कोशिश ही अधूरी थी शायद कभी हौसलों को संभालकर इन अधूरी कोशिश को पूरा कर पाऊं लेकिन परों को फिर से जिंदा करने की कोशिश कभी पूरी नहीं हो सकती शायद ऐसा हो पाता अगर हौसले खरीदे हुए नहीं होते बल्कि उम्मीदों से उन्हें सींचकर उगाया होता अगर सपने आंखों पार बोझ नहीं होते बल्कि आंखों ने उन्हें प्यार से खुद में समेटे होती तो पर ना सही आंखें पलकें उठाकर आसमा को जरूर छू लेती और उड़ने की कोशिश भी पूरी है जाती ©पूर्वार्थ #गिरना #उठना #कोशिशकरके #नोजोटोहिंदी