तुम हारी हो..? न.. न.. न.. तुम नारी हो... पर कुंठा मन में धारी हो..? गर्व नहीं क्यूँ क्षोभ तुम्हें नारी की महिमा भारी हो.. तुम बिन क्या सृष्टि सुंदर तुम ही नर आधारी हो.. इस देहमर्म को समझो तो नारी का मतलब समझो तो "ना" "री" का मतलब समझो तो..! ये सूचक है मर्यादा का ये सूचक भाग्यविधाता का..! रचना में दीगर भेद नहीं लघु भेद ही जीवनदाता सा..! नारी से नर को पृथक करो देखो फिर बचती आरी है..! नारी में नर का विलय हुआ तब ही तो बनती नारी है..! तुम अपनी देह निभा लेना हम अपनी देह निभा लेंगे..! हम में तुममें कोइ भेद नहीं कर्मो से सिद्ध करा देंगे..! तुम कोमल चित कोमल काया इस प्रकृति का श्रृंगार हो तुम..! तुमसे ही प्रेम प्रवाहन है कल्याणी सुरसरी धार हो तुम..! तुम जीवन की आधारशिला तुम मर्यादा की जननी हो..! करुणा कर्तव्य की सीमा हो तुम ही भू-तल दुःखहरनी हो..! स्वीकार करो प्रारब्ध रचा जो जीवन तुमने पाया है..! सृष्टि की अनुपम रचना हो या हरि-हर स्वयं ही आया है..! ©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #Woman please read in caption 🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿