अजीब दास्ताँ है ये, हर बार खत्म होने से पहले शुरू हो जाती है। जब भी चाहूं मै मस्त मग्न जीने की तब , एक घाव नई बन जाती है। अजीब दास्तां है ये , हर बार खत्म होने से पहले शुरु हो जाती है । जब भी चाहूं पाक हो जाना तब, एक अपराध नई हो जाती है । अजीब दास्तां है ये