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अजीब दास्ताँ है ये, हर बार खत्म होने से पहले शुरू

अजीब दास्ताँ है ये, हर बार खत्म होने से पहले शुरू हो जाती है।
जब भी चाहूं मै मस्त मग्न जीने की तब ,
एक घाव नई बन जाती है।
अजीब दास्तां है ये ,
हर बार खत्म होने से पहले शुरु हो जाती है ।
जब भी चाहूं पाक हो जाना तब,
 एक अपराध नई हो जाती है । अजीब दास्तां है ये
अजीब दास्ताँ है ये, हर बार खत्म होने से पहले शुरू हो जाती है।
जब भी चाहूं मै मस्त मग्न जीने की तब ,
एक घाव नई बन जाती है।
अजीब दास्तां है ये ,
हर बार खत्म होने से पहले शुरु हो जाती है ।
जब भी चाहूं पाक हो जाना तब,
 एक अपराध नई हो जाती है । अजीब दास्तां है ये
deepshikha4882

Deep Shikha

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अजीब दास्तां है ये #शायरी