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रूठे को मानने आया तो इंकार कैसे करूं, शिकवा करूं



रूठे को मानने आया तो इंकार कैसे करूं,
शिकवा करूं या उससे प्यार करूं। 
दिन रात रहता था दिल में वो मेरे, रूबरू मिल रहा है फिर 
प्यार का इजहार कैसे करूँ। 
खुशी के आंसू बादल बन कर बरस गए देख कर उसे सौगात बन कर मेरी,
अपनी खुशी का इजहार कैसे करूं। 
डूबी थी कभी नाव मेरी उसकी दिल की गहराई में
पड़ी है अभी भी मझदार में
इसका इजहार कैसे करूं। 
दोस्त था कमाल का लूटा दिया जीवन का मरहम
जिसके लिए अब मुजरिम बना के उसे गिरफ्तार कैसे करूं। 
धोखा, फरेब, झूठ छाया है दुनिया में 
सच बोल कर  ललित गुनाह का इजहार कैसे करूं। 
रूठ जाऊं बेवजह किसी से
फितरत नहीं अपनी, आखिर
इंसान हूं इंसानियत का त्याग कैसे करूं।

©Lalit Saxena
  #इंकार