माथे पर चमकती लकीरों से,सालों की गिनती हो जाती है, अनुभवी आँखों से स्नेह छलकता,परिपक्वता मुस्कुराती है, मौन साक्षी बन कर देखती,हर क्षण का लुत्फ उठाती है, खिलती जाती पुनः मुस्कान,उम्र ज्यों-ज्यों चढ़ती जाती है। आगे जाने की होड़,दौड़ने की रफ्तार कम जाती है, दंत-नख संग धार जिह्वा की भी नर्म हो जाती है, बल आजमाने वाले हाथ,आशीर्वादों से भर जाते हैं, झुकते कमर-कंधों के साथ,दुआओं के कद बढ़ जाते हैं। कद शरीर का छोटा हो जाता,सर बड़प्पन का उठ जाता है, भ्रम,मोह और अधिकारों का,जब दिन-दिन टूटा जाता है, सूरज समय का चढ़ता है, अहं अभिमानी झुक जाता है, झुर्रियों भरी झपकती पलकों से,लौटा बचपन मुस्काता है। माथे पर चमकती लकीरों से,सालों की गिनती हो जाती है, अनुभवी आँखों से स्नेह छलकता,परिपक्वता मुस्कुराती है, मौन साक्षी बन कर देखती,हर क्षण का लुत्फ उठाती है, खिलती जाती पुनः मुस्कान,उम्र ज्यों-ज्यों चढ़ती जाती है। आगे जाने की होड़,दौड़ने की रफ्तार कम जाती है, दंत-नख संग धार जिह्वा की भी नर्म हो जाती है, बल आजमाने वाले हाथ,आशीर्वादों से भर जाते हैं,