जिसपर एक दुनियाँ बस्ती थी मेरी उसके ललाट की बिंदी से भोर होती थी मेरी उन आखों में मोहब्बत के हंसी ख्वाब थे उस गालों पर सुर्ख गुलाबों के चाव थे उन होंठों पे जैसे असंख्य मंदिरा के सैलाब थे कैसे भूलू मैं वो चेहरा .. OPEN FOR COLLAB 😁 #ATकैसेभूलूँवोचेहरा • A Challenge by Aesthetic Thoughts! 💚 इस प्यारे चित्र को अपने मनमोहक शब्दों से सजाएं| 💜 Transliteration: Kaise bhoolun woh chehra (How do I forget that face)