White थम गया ज़िन्दगी का एक सिलसिला शायद। कर लिया खुद का ग़लत एक फैसला शायद। मिल नहीं पा रही मंजिल तलाश थी जिसकी- चुन लिया हमने ही ग़लत एक रास्ता शायद। वक्त करने लगा अभी है कुछ दग़ा शायद। या कि होने लगा है कम ये हौसला शायद। मात खाने लगा हूँ मैं तो हर एक बाज़ी में- दाँव पड़ने लगा है सब अभी उल्टा शायद। जो कमाया था नाम हो रहा फ़ना शायद। हो गया था मैं आप ही से बदगुमा शायद। मिट रहा है वजूद धीरे-धीरे अब तो मेरा- लोग कहते है जोश अब नहीं रहा शायद। रिपुदमन झा 'पिनाकी ' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #शायद