घर से निकल कर घर को लौट आता हूँ, कितना मुश्किल है ये bye कहना.... अपनों को छोड़, किसी ओर गली जाना.. बिना कुछ कहे बस मुस्कराना... याद बनाकर, हर लम्हे को जिये जाना... जिम्मेदारी का बोझ, या अपनों का ख्याल बस आगे बढ़े जाना.... अपनों से दूर जाना, अपनों के लिये कमाना.... उनकी ख़ुशी के लिये सब सहे जाना..... मन न हो किसी को छोड़कर जाने का, फिर भी छोड़ जाना कुछ सपनों के लिए, मेरे अपनों के लिए... उस गांव को छोड़ मेरा शहर चले जाना सब ठीक है,पर बहुत मुश्किल है ये जाते वक़्त अलविदा कहना माँ की नम आँखों को देख पाना ,तो पिता के बिना बोले सब कह जाना... भाई बहन की चंचलता का चुप्पी में बदल जाना एक दम से सबका अपना ख़्याल रखना कह जाना.... फ़िर ये सब देख ख़ुद को समझाना अपने अश्कों को छुपाकर, बस मुस्कराना अपने घर,गाँव को छोड़ दूर शहर चले जाना कितना मुश्किल है ये bye कहना।। #mypoetry कितना मुश्किल है ये bye कहना... @scribbler_alfaz