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छोटी सी गुड़िया। -(Pr

छोटी सी गुड़िया।
                              -(Praveen kumar)

अभी कुछ दिनों की बात है
खिलोने की दुकान पर देखा था।
माँ से जिद कर रही थी,
गुड़िया लेनी है।
माँ ने मना किया, तो रूठ गयी।
मेने पूछ लिया?
इस प्यारी सी गुड़िया को किस गुड़िया की जरूरत है।
मुस्कुरा दी!
और सरमाते हुए माँ के पल्लू में छिप गयी।
इतने में माँ बोली-
"इसका नाम ही गुड़िया है"
पापा की प्यारी है, और माँ की राजदुलारी है।
हम रोज मिलते थे।
पापा के साथ रोज आती थी।
सामने बाले पार्क में खूब खेलती थी।
पापा की तरफ देखकर मुस्कुराती थी।
आठों पर चाँद का टुकुडा बनता था।
और गालों पर गड्ढे से बड़ी मासूम लगती थी।
मानो दुनियां की सारी खुशी मिल गयी हो।
शायद अपने पापा से बहुत प्यार करती थी।
लगभग 7 साल की थी।
भैया बोलती थी,रक्षाबंधन पर राखी भी बंधी थी।
बड़ा प्यार करती थी।
शायद कोई भाई नही था,
पर इस बात का अफसोस भी नही था।
मेरे साथ खूब खेलती थी।
कभी कंधे पर बैठने की जिद करती,
कभी हवा में उछालने को बोलती।
मेरे चारों ओर गोल-गोल घूमती,
फिर मुझे भागकर खुद पकड़ती।
और थक जाने पर,
गोद मे आकर बैठ जाती।
फिर सारी कहानी सुनाती।
ऐसा लगता था।
मानो कोई  छोटी चिड़िया बोल रही हो।
भैया अब कल मिलेंगें,
बोलकर  हस्ते- खेलते घर चली जाती।
2-3 से दिखी नही,
खिलोने बाले से पूछा?
तो बोला! साहब एक अनहोनी हो गयी।
दिल बैठ गया।
पूछा क्या हुआ मेरी गुड़िया को?
सब ठीक तो है!
बोला कुछ ठीक नही है।
आपकी गुड़िया को न जाने किसकी नजर लग गयी।
इस समाज के कुछ हैबान उसे कहा गए।
आपकी गुड़िया को अपनी हवस से मार गए।
इतना सुनकर में जीते जी मर गया।
कैसा भाई हूँ, अपनी बहन को भी नई बचा सका।
पूछा क्या हुआ मेरी गुड़िया को?
सब ठीक तो है!
बोला कुछ ठीक नही है।
आपकी गुड़िया को न जाने किसकी नजर लग गयी।
इस समाज के कुछ हैबान उसे  खा गए।
आपकी गुड़िया को अपनी हवस से मार गए।
इतना सुनकर में जीते जी मर गया।
कैसा भाई हूँ, अपनी बहन को भी नई बचा सका।

Justice for#twinkle #justicefortwinkle
छोटी सी गुड़िया।
                              -(Praveen kumar)

अभी कुछ दिनों की बात है
खिलोने की दुकान पर देखा था।
माँ से जिद कर रही थी,
गुड़िया लेनी है।
माँ ने मना किया, तो रूठ गयी।
मेने पूछ लिया?
इस प्यारी सी गुड़िया को किस गुड़िया की जरूरत है।
मुस्कुरा दी!
और सरमाते हुए माँ के पल्लू में छिप गयी।
इतने में माँ बोली-
"इसका नाम ही गुड़िया है"
पापा की प्यारी है, और माँ की राजदुलारी है।
हम रोज मिलते थे।
पापा के साथ रोज आती थी।
सामने बाले पार्क में खूब खेलती थी।
पापा की तरफ देखकर मुस्कुराती थी।
आठों पर चाँद का टुकुडा बनता था।
और गालों पर गड्ढे से बड़ी मासूम लगती थी।
मानो दुनियां की सारी खुशी मिल गयी हो।
शायद अपने पापा से बहुत प्यार करती थी।
लगभग 7 साल की थी।
भैया बोलती थी,रक्षाबंधन पर राखी भी बंधी थी।
बड़ा प्यार करती थी।
शायद कोई भाई नही था,
पर इस बात का अफसोस भी नही था।
मेरे साथ खूब खेलती थी।
कभी कंधे पर बैठने की जिद करती,
कभी हवा में उछालने को बोलती।
मेरे चारों ओर गोल-गोल घूमती,
फिर मुझे भागकर खुद पकड़ती।
और थक जाने पर,
गोद मे आकर बैठ जाती।
फिर सारी कहानी सुनाती।
ऐसा लगता था।
मानो कोई  छोटी चिड़िया बोल रही हो।
भैया अब कल मिलेंगें,
बोलकर  हस्ते- खेलते घर चली जाती।
2-3 से दिखी नही,
खिलोने बाले से पूछा?
तो बोला! साहब एक अनहोनी हो गयी।
दिल बैठ गया।
पूछा क्या हुआ मेरी गुड़िया को?
सब ठीक तो है!
बोला कुछ ठीक नही है।
आपकी गुड़िया को न जाने किसकी नजर लग गयी।
इस समाज के कुछ हैबान उसे कहा गए।
आपकी गुड़िया को अपनी हवस से मार गए।
इतना सुनकर में जीते जी मर गया।
कैसा भाई हूँ, अपनी बहन को भी नई बचा सका।
पूछा क्या हुआ मेरी गुड़िया को?
सब ठीक तो है!
बोला कुछ ठीक नही है।
आपकी गुड़िया को न जाने किसकी नजर लग गयी।
इस समाज के कुछ हैबान उसे  खा गए।
आपकी गुड़िया को अपनी हवस से मार गए।
इतना सुनकर में जीते जी मर गया।
कैसा भाई हूँ, अपनी बहन को भी नई बचा सका।

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