झुरमुर झुरमुर बदली बरसे, जैसे नयन-कलस हों किरसे, जैसे मेघ पवन को तरसे, जैसे विरह में बिजली कड़के। जैसे जीत गया अँधियारा, भानु, निशा के आगे हारा, प्रकट हुआ राहु हत्यारा, सिमटा चाँद बन गया तारा। जैसे भूल गया मैं रस्ता, छूट गया हाथों से दस्ता, महँगी फ़ुर्सत महँगा बस्ता, बेच दिया मैं बचपन सस्ता। जैसे चले गये सब राही, बिखर गयी पन्नों पर स्याही, शब्दों ने आवज़ लगायी, बस तुम हो और है तन्हाई। जैसे मौसम बदल गये सब, बर्फ़ के रिश्ते पिघल गये सब, नकली चेहरे उतर गये सब, गिरते-गिरते संभल गये सब। जैसे दीये ने ज्योति बिखेरा, तली में पसरा रहा अँधेरा, अक्षर-अक्षर निर्धन मेरा, शब्द हूँ यही है परिचय मेरा। #yqbaba #yqdidi #yqbhaijan #kavita #parichay #shabd