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एक परिंदा न जाने किस सोच में पड़ा हूं आन एक शाखा प

एक परिंदा
न जाने किस सोच में पड़ा हूं
आन एक शाखा पर खड़ा हूं
क्या शक है मुझे अपने पंखों पर
जो मैं इन्हें फ़ैलाने से डरा हूं
जी हां मैं परिंदा हूं
न जाने किस बेकार की सोच में पड़ा हूं

©Surinder Kumari
  #परिंदा