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हम कमाने आए थे चंद सिक्के,,, पर इन घटाओं ने हमे र

हम कमाने आए थे चंद सिक्के,,, 
पर इन घटाओं ने हमे रोका,, 
चमकता रहा ये शहर, 
पर शहर ने ही उठा कर हमे फेंका,,, 
खोखले है यहाँ पर बसे सभी सब, 
मेरे बहते आंसुओ को किसी ने न रोका, 
फिर कते रहे हम यहाँ दर बदर ,, 
किसी की आँखों नें हमको कभी नहीं देखा,, 
पागल बनाया पागल कहा, 
इन्हीं का ज़मीर इन्हें न रोका, 
देते रहे यातनाएं यहां जब भी मौका मिला पीटा,, 
ये शहर है जनाब यहां कोई किसी का नहीं,, 
इससे अच्छा है हमारे गाँव का मकान कच्चा,, 
यहाँ ऊंची इमारतें दिखावा है यहाँ सुकून में किसी को कभी नहीं देखा,,, 
दिल देखना हो तो देखो साहब हम गाँव वालो का
एक बार देकर देखो मौका,,

©Aarav shayari
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