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**गुज़रे वक़्त** कौन बसा है आँखों में रातों मे धुआँ

**गुज़रे वक़्त**

कौन बसा है आँखों में
रातों मे
धुआँ की परछाईं में
शहर से दूर
कोई आंगन की तनहाई में
बेरुखी हवाओं में
एक परी की दुआओं में
कौन बसा है यादों में
दिल की गहराई में
भीगी आँखों की आँसूओं में
श्मशान की उस फ़िज़ाओं में
डर की उन एहसास में
गुमनाम किसि आहट में
बीती वक्त की पन्नो में #Shayar
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