Unsplash हाल-ए-दिल हम छुपाने चले, पर ख़ुद को ही हर बात सुना बैठे थे। ज़िक्र आया जो उनकी बेवफ़ाई का, ख़ुद को ही इल्ज़ाम दे बैठे थे। हुस्न वालों से क्या शिकायत हो, ख़्वाब आँखों में हम सजा बैठे थे। दिल की महफ़िल सजी थी तन्हाई में, हम अपने ही दर्द को गा बैठे थे। बात निकली तो बह न पाए अश्क, अपने क़िस्से को फिर दबा बैठे थे। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर