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शीर्षक – मुस्कुरा रहा हूं मैं ‌‌सोचता हूं कि खिलौन

शीर्षक – मुस्कुरा रहा हूं मैं
‌‌सोचता हूं कि खिलौने की दुकान खोल लूँ 
बडी तंगी में आजकल आ रहा हूं  मैं ।
जब से दुकान लगाई है खिलौनों की 
यतीम बच्चों से नजरें चुरा रहा हूं मैं ।
कुछ सिक्के मैने बांट दिए खैरात में ,
इसलिए आज सिर्फ पानी खा रहा हूं मैं।
मां मेरी आमदनी का हिसाब न पूछ बैठे !
आजकल उनसे नज़रें चुरा रहा हूं मैं ।
फुटपाथ पर चीखती है भूख और लाचारी ,
और घर में अपने त्यौहार मना रहा हूं मैं ।
कहीं मेरे बच्चे कल मेरी वसीयत ना मांग लें ,
इसलिए गधे की तरह दिन रात कमा रहा हूं मैं ।
किसी की बेटी आई है मेरे घर रानी बनकर ,
इसीलिए मां बाप को वृद्धाश्रम ले जा रहा हूं मैं ।
अपनों के बीच आजकल है दुश्मनी का दौर ,
इसलिए दीवार सिर से ऊंची उठा रहा हूं मैं ।
बिक रही हैं बेटियां यहां कौड़ियों के दाम ,
इसलिए गर्भ में ही भ्रूण हत्या करा रहा हूं मैं ।
सुना है लोगों का जमीर सोया है आजकल
इसलिए शब्दों के हथौड़े चला रहा हूं मैं ।
सोचा कि आज तुमको जिंदगी से रूबरू करा दूं ,
तुम सोचने लगे और देखिए मुस्कुरा रहा हूं मैं ।

©AwadheshPSRathore_7773
  #akela जिंदगी में कई बार हम हमारे कुछ काम उसी व्यक्ति की वजहों से करने लगते हैं की चलो यार उसे गिला नहीं होना चाहिए लेकिन एक सीमा के बाद यह सब हमे एक जुर्म लगने लगता है सीधी बात यह की सीधे स्वयं पर विश्वास रखिए हमेशा जिंदगी में कुछ न कुछ खोने के बाद ही कुछ बहुत special मिलता है बस कोशिश करते रहिए और उसका फल प्रभु बालाजी पर छोड़ देना चाहिए। 👍🇮🇳👍

#akela जिंदगी में कई बार हम हमारे कुछ काम उसी व्यक्ति की वजहों से करने लगते हैं की चलो यार उसे गिला नहीं होना चाहिए लेकिन एक सीमा के बाद यह सब हमे एक जुर्म लगने लगता है सीधी बात यह की सीधे स्वयं पर विश्वास रखिए हमेशा जिंदगी में कुछ न कुछ खोने के बाद ही कुछ बहुत special मिलता है बस कोशिश करते रहिए और उसका फल प्रभु बालाजी पर छोड़ देना चाहिए। 👍🇮🇳👍 #ज़िन्दगी

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