जिंदगी अपने ही साये से ठिठक जाती है लब तलक बात तो आती है ,अटक जाती है इश्क़ का कोई नतीज़ा तो हो, अच्छा कि बुरा न दम निकलता है ,न दिल की कसक जाती है कोई तारीकी मेरे रस्ते में नहीँ आयेगी अब नज़र हद्द ए नज़र से भी सरक जाती है कोई कानों में जब सरगोशी सी कर जाता है रूह तक उसके लहज़े की खनक जाती है अब तलक मुझको रूलाती थी,थकाती थी मुझे अब तो यह गर्दिशे हालात भी थक जाती है ख़्याल उनका जो हौले से गुज़र जाता है दूर तक उनके पैरहन की महक जाती है अज़ल को रोकिये क्या कह के उनके आने तक साँस आ आ के हलक में ही अटक जाती है अनु 'इंदु ' हसरतें ....यादें अनु मित्तल' इंदु '