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#ग़ज़लغزل: १५६ ------------------------- प्यार के

#ग़ज़लغزل: १५६
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प्यार के सूखे गुलाबों से महक उठती है
सिक्के चलते नहीं, पर उनसे खनक उठती है//१

जब भी तू देखती है नज़रें चुरा कर मुझको
पास के पेड़ पे बुलबुल भी चहक उठती है //२

इतने नज़दीक न आओ कि मेरी नस नस में
तुझको पा लेने की इक दम से सनक उठती है //३

सच में मिल जाएँ तो अंजामे मुहब्बत क्या हो
सोचने से ही मेरी साँस बहक उठती है //४

कैसे भर लूँ तुझे बाँहों में उठा कर मुतलक़
जबकि तू हाथ भी रखने से मसक उठती है //५

हाय वो तेरा चिंहुँक उठना मेरे छूने से 
जैसे कच्ची कली इकदम से चटक उठती है //६

वस्ल के बाद कहाँ उठती हैं वैसी मौजें
हिज्र में जैसी कि रह रह के कसक उठती है //७

जब मैं जाता हूँ उसे छोड़ के सरहद लड़ने 
मुँह को आँचल में छुपा कर वो फफक उठती है //८

हमने अपने लहू से 'राज़' लिखी है ये ग़ज़ल
इसके हर शेर से क़ातिल की महक उठती है //९

#राज़ नवादवी© راز نوادوی
🆁🅰🆉 🅽🅰🆆🅰🅳🆆🅸
#ग़ज़लغزل: १५६
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प्यार के सूखे गुलाबों से महक उठती है
सिक्के चलते नहीं, पर उनसे खनक उठती है//१

जब भी तू देखती है नज़रें चुरा कर मुझको
पास के पेड़ पे बुलबुल भी चहक उठती है //२

इतने नज़दीक न आओ कि मेरी नस नस में
तुझको पा लेने की इक दम से सनक उठती है //३

सच में मिल जाएँ तो अंजामे मुहब्बत क्या हो
सोचने से ही मेरी साँस बहक उठती है //४

कैसे भर लूँ तुझे बाँहों में उठा कर मुतलक़
जबकि तू हाथ भी रखने से मसक उठती है //५

हाय वो तेरा चिंहुँक उठना मेरे छूने से 
जैसे कच्ची कली इकदम से चटक उठती है //६

वस्ल के बाद कहाँ उठती हैं वैसी मौजें
हिज्र में जैसी कि रह रह के कसक उठती है //७

जब मैं जाता हूँ उसे छोड़ के सरहद लड़ने 
मुँह को आँचल में छुपा कर वो फफक उठती है //८

हमने अपने लहू से 'राज़' लिखी है ये ग़ज़ल
इसके हर शेर से क़ातिल की महक उठती है //९

#राज़ नवादवी© راز نوادوی
🆁🅰🆉 🅽🅰🆆🅰🅳🆆🅸
raznawadwi7818

Raz Nawadwi

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