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कविता : होली आयी होली, आयी होली, खुशियाँ संग में

कविता : होली

आयी होली, आयी होली, खुशियाँ संग में लायी होली।
ऊँच-नीच का भेद मिटाकर, सद्भाव फैलाये होली।।

भोलू खेला, सोनू खेला, रंगों का बस लगा है मेला।
गुड़िया की सखियाँ भी देखो, कर देती हैं सबको गीला।।

चाचा, चाची, ताऊ, भतीजा, आज बड़ा न  कोई छोटा।
ईर्ष्या, द्वेष मिटाकर देखो, कर रहे सब पग-पग फेरा।।

लाल, हरा, पीला है कोई, कोई नटवर लाल लगे।
बैरागी बम भोला कोई, कोई कृष्ण की चाल चले।।

गुब्बारों की धूम मची है, पिचकारी भी करे है खेला।
रंग-बिरंगे मुखरो पर, खुशियों का बस लगा है डेरा।।

दहीबड़ा, पुआ और गुजिया, तरह-तरह पकवान बने।
भांग का टुकड़ा खाकर देखो, सब यहाँ धनवान लगे।।

आओ खेले मिलकर सारे, रंगों की यह प्यारी होली।
प्रेम सरोवर से भर दे, अपनो की हम खाली  झोली।

 नाचों, गाओ, झूमो आज, लेकर संग रंग गुलाल।
 नीला, पीला, लाल, बैंगनी, रंग दो यह सारा संसार।।

नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार

©Niraj Srivastava
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