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फगुआ आयो हर घर-दर दस्तक पीट के करे ज़ोर फाल्गुन पू

फगुआ आयो हर घर-दर दस्तक पीट के
करे ज़ोर फाल्गुन पूर्णिमा की गीत रे
थिरक-थिरक अल्पाये फाग-धमार रे 
लो आयो बसंत की होली हौले हौले 
दिख रहे खेतों में सरसों इठलाते से
मोहे गेहूँ के बालियाँ मंद मुस्काते हुए
खिले कुछ चेहरे नुर छलकाते हुए
शरम में सिमटे लाल-पीले गीले से
अंग-अंग बहके पानी के आग पे
मचले तन- मन मस्ती के राग में
कभी गुझिया पर ठंढई बहकाती हुई
तो आम मंजरी चंदन में लिपटाती हुई
हाँथ में पुए पकड़े,मुख में दबे दहीबड़े
स्वाद घोले वो गोल-गोल पूड़ी-छोले
जब ढोलक,झाँझ,मंजिरे बोले चींख के
बस पास एक-दूजे को सब खींच लें
ये रंग,गुलाल,धुरखेल जोड़े प्रीत रे
नृत्य-संगीत में झूमे उपर-नीचे भीग के 
मग्न हम बोले जोगी जी धीरे-धीरे! 
सा रा रा रा रा...जोगी जी धीरे-धीरे!

©Deepali Singh फाल्गुन आयो... 

#Holi
फगुआ आयो हर घर-दर दस्तक पीट के
करे ज़ोर फाल्गुन पूर्णिमा की गीत रे
थिरक-थिरक अल्पाये फाग-धमार रे 
लो आयो बसंत की होली हौले हौले 
दिख रहे खेतों में सरसों इठलाते से
मोहे गेहूँ के बालियाँ मंद मुस्काते हुए
खिले कुछ चेहरे नुर छलकाते हुए
शरम में सिमटे लाल-पीले गीले से
अंग-अंग बहके पानी के आग पे
मचले तन- मन मस्ती के राग में
कभी गुझिया पर ठंढई बहकाती हुई
तो आम मंजरी चंदन में लिपटाती हुई
हाँथ में पुए पकड़े,मुख में दबे दहीबड़े
स्वाद घोले वो गोल-गोल पूड़ी-छोले
जब ढोलक,झाँझ,मंजिरे बोले चींख के
बस पास एक-दूजे को सब खींच लें
ये रंग,गुलाल,धुरखेल जोड़े प्रीत रे
नृत्य-संगीत में झूमे उपर-नीचे भीग के 
मग्न हम बोले जोगी जी धीरे-धीरे! 
सा रा रा रा रा...जोगी जी धीरे-धीरे!

©Deepali Singh फाल्गुन आयो... 

#Holi
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Deepali Singh

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फाल्गुन आयो... #Holi #कविता