एक नस्ल के हाथ मे अगली नस्ल क़ि कमान सौंप कर निकल पड़ा मैं......... उस लम्बे सफर पर जो खुदा के घर तक जाता है...... इस पाठ पर पेड़ पौधे धूप छाया सब कुछ अस्तित्वगत था.... ओर अब सारे संचित स्वप्न कल्पनाये ओर आशाये मेरा साथ छोड़ अलबिदा कह रहे थे....... सांसे तो अब भी साथ थी लेकिन धडकने मंद होने लगी थी..... परमधाम के द्वार पर बंन्दनवार सज रहे थे.... क्योंकि पृथ्वी की एक अलौकिक शख्सियत ईश्वर के परम् धाम मे ग्रह प्रवेश कर रही थी...... परम् धाम मे ग्रह प्रवेश........