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आज फिर एक शाम तुम्हारे लिये जीते हैं तुम्हें रोज़

आज फिर एक शाम तुम्हारे लिये 
जीते हैं तुम्हें रोज़ अक्सर सुबह शाम 
आज फिर एक जाम तुम्हारे लिए 
प्यार तो सभी करते हैं इस दुनिया में 

दरस से जो करे मोहब्बत वो इश्क़ ही क्या 
दरस से जो करे मोहब्बत वो इश्क़ ही क्या
सूफियाना है यह चाहत का सफ़र क्या कहें  
आज फिर एक शाम तुम्हारे लिए 
जीते हैं जिन्हें यह पैग़ाम उनके लिए 

उठ जाए कायनाथ पूरी फिर भी चाहेंगे तुम्हें
एक अधूरी सी कहानी यह 
जिसको लोग हीर रांझा कहते हैं
आज फिर एक जाम तुम्हारे लिये
वफ़ा के यह रंग जो रंगीन करें 
वैसा एक पैग़ाम तुम्हारे लिए 

जहां भी हो सलामत रहो मेरे हसीन
ख़ुदा से एक दरखुवस्त तुम्हारे लिए 
सदा महको तुम इन हसीन शामों में
एक प्यार भरा पैग़ाम तुम्हारे लिए ॥

©navroop singh
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