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नज़रों को चुराकर भी मुनाफा हुआ उसे, मैं दो-दो-चार क

नज़रों को चुराकर भी मुनाफा हुआ उसे,
मैं दो-दो-चार करके भी घाटे में रह गया।

©कवि विनय आनंद घाटे में रह गया।
नज़रों को चुराकर भी मुनाफा हुआ उसे,
मैं दो-दो-चार करके भी घाटे में रह गया।

©कवि विनय आनंद घाटे में रह गया।

घाटे में रह गया। #Shayari