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ना किसी को रुलाना था ना खुद रो सकता था मा

ना  किसी  को  रुलाना  था  ना  खुद  रो  सकता  था
मां  बाप  कि  परवरिश  कुछ  एसी  थी।

जि  ने  कि  बात  करें  तो  हरबार  
दुसरों  के  लिए  ही  जिता  रहा।

जित  तो  मुश्किल  थी  पर  
हार  भी  नहीं  सकता  था।

हासिल  बहुत  कुछ  करना  था  पर
ठोकरों  के  सिवा  कुछ  हासिल  नहीं  हुआ।

पढ़ाई , नोकरी  और  जिम्मेदारी  यह  सबकुछ 
बस  एक  बस्तर  में  समां  हुआ  था।

जैसे जैसे  बड़े  हुए  बचपन  के  सारे  सपने 
एक एक  कर  धुंधले  होते  रहे।

सबकुछ  भुलाकर  बस  सबके  सामने  
हंसमुख  बने  रहना  था

लड़का  जो  ठहरा  मैं  दर्द , हार....
सबकुछ  बस  सहना  ही  था।

मां-बाप  कि  परवरिश  कुछ  एसी  थी  कि
ना  रुला  सकता  था  ना  खुद  रो  सकता  था।

©Manthan's_kalam
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