विहावा छन्द 122 122 12 मुझे रूप नारी लगे । वही सृष्टि सारी लगे ।। महादेव देवी कहे । धरा देख सेवी रहे ।। रहा व्यर्थ का सोचना । खड़ा साथ है मोहना ।। डरो आप ऐसे नही । मिले राह टेढ़ी सही ।। मुझे मातु सीता मिली । यही देख पत्नी जली ।। नहीं माँग वो तो भरे । सदा मूर्ख बातें करे ।। चलो बात प्यारी करे । नये स्वप्न क्यारी भरे ।। लगे प्रेम की ज्यों झड़ी । नहीं दूर देखो खड़ी ।। अभी देखना गाँव है । वहाँ नीम की छाँव है ।। मिले नीर जो कूप से । पियें संग वे भूप के ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विहावा छन्द 122 122 12 मुझे रूप नारी लगे । वही सृष्टि सारी लगे ।। महादेव देवी कहे । धरा देख सेवी रहे ।।