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किन्नर आज आईने के सामने बैठ मैं खुद को निहार रही

किन्नर 

आज आईने के सामने बैठ मैं खुद को निहार रही थी और सोच रही थी "इतनी खूबसूरत तो हूँ फिर क्यों मुझ पर पाबंदियां थी ये सारा जमाना मुझे क्यों स्वीकार नहीं करता "|
बचपन से ही मुझे सजने सवांरने का बहुत शौक था माँ जब भी अपनी आँखों में सुरमा लगती तो मुझे भी खुद को माँ की तरह आँखों में सुरमा, होंठो पर लाली, झुमके, चूड़ियां और माँ की वो जरकन वाली साड़ी के साथ परांदा लगा कर खुले आसमन के नीचे जी भरकर नाचने का मन करता था |
पर पिता जी को मेरा यूँ सजना सवांरना कभी पसंद नहीं था वो मुझमे अपना बेटा तलाश रहे थे वो चाहते थे मैं भी बाकि लड़कों की तरह जियूं |
वो अक्सर मुझे डाँटते" नालायक, लड़का होकर लड़कियों की तरह कपड़े पहनता है, पुरे समाज में हमारी नाक कटवाकर रहेगा "|
मुझे ये सब कहा समझ आती थी  मैं अक्सर माँ और बहनों के कपड़े ,गहने पहन लिया करती थी और हर बार पिता जी मुझे कई- कई दिनों तक कमरे में भूखा प्यासा बंद कर दिया करते थे|
 माँ बहुत रोया करती थी मेरी बहने पिता जी से अक्सर मुझे बचाया करती थी एक दिन पिता जी ने मुझे लड़कियों की कपड़ों में सबके सामने नाचते देखा और पिता जी ने मुझे कोसते हुए घर से निकल फेंका |
उन्हें मेरा उनका कहने में शर्म आती थी क्यूंकि उन्हें समाज की बनाई इस दोगली दुनिया में अपने झूठे मानसम्मान की चिंता थी,
 मैं बेघर हो गयी थी मैं बहुत रोई ,बहुत मनाने की कोशिश की पर पिता जी नहीं माने |
आख़िरकार मैं, मेरा मासूम बचपन इतनी बड़ी दुनियां में दर- दर की ठोकरे खाने और खुद के अस्तित्व को जानने में गुजर गया  मेरा बचपन दुनिया की झूठी मानमर्यादाओं और दुनियां की बनाई गयी इन् झूठी और फरेबी पैमानों पर खरा नहीं उतर पाया|
 मेरी क्या गलती थी क्या समाज सिर्फ लड़के या लड़कियों के ही रहने के लिए बना है क्या हमें इस दुनियां में थोड़ी सी जगह नहीं मिल सकती|
 आखिर क्यों ? ,मुझे या मुझ जैसे और भी को, घर नशीब नहीं ,वो मान सम्मान नहीं,  हमारी क्या गलती थी यही की मैं एक किन्नर हूँ | 

SONAMKURIL किन्नर (एक अनकही कहानी ),
#kinnar #chhakka #mitha #untoldstoryteller
किन्नर 

आज आईने के सामने बैठ मैं खुद को निहार रही थी और सोच रही थी "इतनी खूबसूरत तो हूँ फिर क्यों मुझ पर पाबंदियां थी ये सारा जमाना मुझे क्यों स्वीकार नहीं करता "|
बचपन से ही मुझे सजने सवांरने का बहुत शौक था माँ जब भी अपनी आँखों में सुरमा लगती तो मुझे भी खुद को माँ की तरह आँखों में सुरमा, होंठो पर लाली, झुमके, चूड़ियां और माँ की वो जरकन वाली साड़ी के साथ परांदा लगा कर खुले आसमन के नीचे जी भरकर नाचने का मन करता था |
पर पिता जी को मेरा यूँ सजना सवांरना कभी पसंद नहीं था वो मुझमे अपना बेटा तलाश रहे थे वो चाहते थे मैं भी बाकि लड़कों की तरह जियूं |
वो अक्सर मुझे डाँटते" नालायक, लड़का होकर लड़कियों की तरह कपड़े पहनता है, पुरे समाज में हमारी नाक कटवाकर रहेगा "|
मुझे ये सब कहा समझ आती थी  मैं अक्सर माँ और बहनों के कपड़े ,गहने पहन लिया करती थी और हर बार पिता जी मुझे कई- कई दिनों तक कमरे में भूखा प्यासा बंद कर दिया करते थे|
 माँ बहुत रोया करती थी मेरी बहने पिता जी से अक्सर मुझे बचाया करती थी एक दिन पिता जी ने मुझे लड़कियों की कपड़ों में सबके सामने नाचते देखा और पिता जी ने मुझे कोसते हुए घर से निकल फेंका |
उन्हें मेरा उनका कहने में शर्म आती थी क्यूंकि उन्हें समाज की बनाई इस दोगली दुनिया में अपने झूठे मानसम्मान की चिंता थी,
 मैं बेघर हो गयी थी मैं बहुत रोई ,बहुत मनाने की कोशिश की पर पिता जी नहीं माने |
आख़िरकार मैं, मेरा मासूम बचपन इतनी बड़ी दुनियां में दर- दर की ठोकरे खाने और खुद के अस्तित्व को जानने में गुजर गया  मेरा बचपन दुनिया की झूठी मानमर्यादाओं और दुनियां की बनाई गयी इन् झूठी और फरेबी पैमानों पर खरा नहीं उतर पाया|
 मेरी क्या गलती थी क्या समाज सिर्फ लड़के या लड़कियों के ही रहने के लिए बना है क्या हमें इस दुनियां में थोड़ी सी जगह नहीं मिल सकती|
 आखिर क्यों ? ,मुझे या मुझ जैसे और भी को, घर नशीब नहीं ,वो मान सम्मान नहीं,  हमारी क्या गलती थी यही की मैं एक किन्नर हूँ | 

SONAMKURIL किन्नर (एक अनकही कहानी ),
#kinnar #chhakka #mitha #untoldstoryteller
sonamkuril1938

Sonam kuril

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