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Beautiful Moon Night पर...कुछ के आंगन बचे ही कहा

Beautiful Moon Night 

पर...कुछ के आंगन बचे ही कहां
खो गए सूखे पत्तों की मानिंद
तूफानी हवा के तेज़ झोंके
उड़ाकर ले गए,,,सब कुछ 
सिकुड़ गए अठखेलियों के दामन
दूर.. घर के पीछे कबाड़ दान में
लौटकर देखती है वो पगली
उस आले को,,जिसमें रखती थी
वो छोटी डिब्बी स्याही वाली
वो ताख जिस पर जमाया जाता
शीशा,कंघा और तेल की शीशी को
जल्दी में शीशे को चकनाचूर कर देती
और कह देती.. छोटे ने गिरा दिया
और जल्दी भी किस बात की
थोड़ी जल्दी पाठशाला जाने की
और थोड़ी जल्दी मां को हल्दी देने की
कभी मन ना हुआ तो मां से कह दिया
फिर मां अकेली सारा घर संभालती
और वह अपने खिलौने खंगालती
पर अब लौटकर भी लौट नहीं पाएगी
पीछे आने पर अपनी मासूमियत पर
भर-भर आंसू पछताएगी
अब बस खुद की एक दुनिया में है
जहां कोई बहाना नहीं चलता
जहां चाहकर भी कोई सच्चाई नहीं सुनता
यूं ही नहीं कहते है सब कि बीता कल अच्छा था
सच गुजरा बचपन वाकई सच्चा था।।

©परिंदा
  #beautifulmoon