#OpenPoetry (अनुराधा घनाक्षरी) औरतें """""""""""""""""""" सु-छंद की किताब-सी सुगंध-सिक्त ख़्वाब-सी खिले-खिले गुलाब-सी हैं बहार औरतें सुगेह में पली नहीं ढँकी रही खुली नहीं कुसंग में घुली नहीं वो गँवार औरतें कभी कभी हुआ यही रहा सही न आदमी सही नहीं रुआब को दी सुधार औरतें कभी बुरा न सोचना नहीं उन्हें दबोचना सुदक्ष हैं शिकार में धार-दार औरतें #औरतें #गुलाब #आदमी #शिकार #ghumamgautam #छंद